शुष्क काष्ठ पल्लवीले (अ-४०)

कमंडलुतले तीर्थ शिंपता, शुष्क काष्ठा वरी 

क्षणांत पर्णे येऊनि झाले, जीवीत वृक्षापरी ॥धृ ।।

सर्वांगावर कुष्ठ जाहले 

अमंगलापरी जीवन सगळे 

जगणे त्याला असह्य झाले 

जो तो झिडकारी                  ।। १।। 

माया ममता सुकून गेली 

परित्यक्तता भाळी आली 

संसारातुन विरक्ति आली 

याचक प्रभू दारी                   ।। २।। 

शुष्क काष्ठ त्या प्रभूने दिधले

सेवाकरी तूं श्रीगुरु वदले 

जाईल तुमचे कुष्ठ ब्राह्मणा 

पर्णे येतील जरी                    ।। ३।। 

दयार्द्र झाली श्रीगुरु मूर्ति 

काष्ठावरती तीर्थ शिंपती 

पर्णे येऊनि सुवर्ण कांती 

अर्पितसे नरहरी                  ।। ४।।

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